सच्चाई
ऐ जिंदगी तूने क्यों दिखा दिया यह मंजर जिसे समझा था अपना वो ही मार गया खंजर ,
अमीरों की इमारतों ने आगे कभी बढ़ने न दिया अब तो गरीबों की बची जमीन भी हो चुकी है बंजर ,
सारी हदें तोड़ कर बढ रही है यूं दुनिया आगे की नदी की तरह ही सुखाए जाएंगे समुंदर ,
दो कदम दुनिया के साथ चलकर जान गए हैं हकीकत कौन है कैसा और क्या है किस के दिल के अंदर।
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